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कविताएँ

श्रापित

April 11, 2020 08:13 PM

— रोशन

बड़ा अज़ब सा नज़ारा

घटित कर ही गया
एक
निर्जीव तत्व
सजीव पर
भारी पड़ गया
दंभियों का दंभ चूर
करके ईक दूजे से दूर
नयनों में न रहा नूर
एक
अति सुक्ष्म अदृश्य
इस
विशालकाय जीवन को
धराशायी कर गया
विपद विश्व पर
आन पड़ी भारी
क्या करें कुछ सूझे नाही
करवा रही ताता थइया
युगों युगों से महामारियाँ
प्राण लेतीं ही आई हैं
कुदरत से खिलवाड़ की
प्रकृति ने मात्र
झलक दिखलाई है
बेज़ार हुई दुनियां पर
आदमी इन्सानियत के
नजदीक हो गया

(सम्पादक फेस2न्यूज)

 
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