मनमोहन सिंह
मुझे डगशाई की ऐतिहासिक जेल देखने का मौका मिला। वहां जाते ही मुझे बिस्मिल अज़ीमाबादी के उस गीत की ये लाइनें मेरे होठों पर आ गईं: "सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाजू -ए- कातिल में है"
यह बात सही है कि बिस्मिल का यह गीत इंकलाबी लोगों का तराना बन कर देश भर में गूंजता रहा और आज भी इसे आंदोलनों में गया जाता है। अधिकतर लोग इसे रामप्रसाद बिस्मिल की रचना समझते हैं पर ऐसा नहीं है। इसे बिस्मिल अज़ीमाबादी ने पहली बार 1921 में पढ़ा था, लेकिन डगशाई की इस जेल की दीवारों की बीच यह नगमा जज्बात बन कर न जाने कब से गूंज रहा होगा, इसकी कल्पना कि जा सकती है। जेल की दीवारें आज भी आयरलैंड में आज़ादी की लड़ाई में जुट वे 75 सैनिकों की दास्तां सुना रही हैं जिन पर पर आरोप था कि उन्होंने बरतानिया की गोरी सरकार के खिलाफ बगावत की है।
समुद्र तल से लगभग छह हजार फुट की ऊंचाई पर बसे डगशाई की यह जेल 1849 में निर्मित की गई थी। इसी जेल में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के भी कई पन्ने जुड़े हैं।
अब इस जेल को एक अजायबघर बना दिया गया है। आयरलैंड के जिन 75 कैदी सैनिकों को इस जेल में लाया गया था उन पर इसी जेल में कोर्टमार्शल की कार्यवाही चली। उनमें से अधिकतर को उम्र कैद और 27 को मौत की सज़ा सुना दी गई, लेकिन बाद में इनमें से 13 की मौत की सजा को उम्र कैद में बदल दिया गया। बाकी बचे 14 सैनिकों को जेल के पीछे गोली मार दी गई।
आयरलैंड में चली आज़ादी की लड़ाई का असर भारत में चल रहे आज़ादी के आंदोलनों पर भी पड़ा। जब जनवरी 1919 में आयरलैंड आज़ाद हो गया तो भारत के लिए भी एक उम्मीद बंध गई। यहां आंदोलन और तेज़ हो गए। आयरलैंड क्रांति के एक नेता ईमोन डे वेलोरा महात्मा गांधी के मित्र थे। महात्मा गांधी उनके बड़े प्रशंसक भी थे। इस कारण जब महात्मा गांधी को आयरलैंड में आज़ादी की लड़ाई लड़ने वाले सैनिकों को डगशाई की जेल में लाया जाने की खबर मिली तो वे हालात का जायज़ा लेने खुद डगशाई आ गए और अनुरोध किया कि उन्हें भी एक रात के लिए इसी कारागार की किसी कोठड़ी में रहने दिया जाए। महात्मा गांधी जिस कोठडी में उस रात रहे थे वह भी आज मौजूद है। (मनमोहन सिंह जनसत्ता, दिव्य हिमाचल और दैनिक भास्कर के पूर्व पत्रकार हैं)