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डिजाइनर बेबी या सिजेरियन संतान?

June 18, 2019 12:36 PM

मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिर्विद्, चंडीगढ़

Madan Gupta Sapatu
 हमारे ग्रंथों, वैदिक ज्योतिष में गर्भाधान संस्कार एक पर्व के रुप में देखा जाता था ताकि उत्तम संतान की प्राप्ति हो। षोडश संस्कारों में से इसे प्रथम स्थान पर रखा जाता था। इस संदर्भ में बहुत से ज्योतिषी इसका मुहूर्त निकालते थे। उसके लिए कई नियम बनाए गए थे। इसमें चंद्रमा की स्थिति, रजोदर्शन की तिथि, मुहूर्त, दिन जैसे श्राद्ध पक्ष, ग्रहण काल, पूर्णिमा या अमावस आदि न हों, के दौरान सहवास न करने का सुझाव है।
वैदिक तथा आयुर्वेद साहित्य में संतान प्राप्ति के लिए कुछ नियम दिए गए हैं कि किस रात्रि के गर्भ से कैसी संतान होगी?
चौथी रात्रि में गर्भधारण करने से जो पुत्र पैदा होता है, वह अल्पायु, गुणों से रहित, दुःखी और दरिद्री होता है।
पांचवीं रात्रि के गर्भ से जन्मी कन्या भविष्य में सिर्फ लड़कियां ही पैदा करेगी।
छठवीं रात्रि के गर्भ से उत्पन्न पुत्र मध्यम आयु (32-64 वर्ष) का होगा।
सातवीं रात्रि के गर्भ से उत्पन्न कन्या अल्पायु और बांझ होगी।
आठवीं रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र सौभाग्यशाली और ऐश्वर्यवान होगा।
नौवीं रात्रि के गर्भ से सौभाग्यवती और ऐश्वर्यशालिनी कन्या उत्पन्न होती है।
दसवीं रात्रि के गर्भ से चतुर (प्रवीण) पुत्र का जन्म होता है।
ग्यारहवीं रात्रि के गर्भ से अधर्माचरण करने वाली चरित्रहीन पुत्री पैदा होती है।
बारहवीं रात्रि के गर्भ से पुरूषोत्तम/सर्वोत्तम पुत्र का जन्म होता है।
तेरहवीं रात्रि के गर्भ से मूर्ख, पापाचरण करने वाली, दुःख चिंता और भय देने वाली सर्वदुष्टा पुत्री का जन्म होता है। ऐसी पुत्री वर्णशंकर कोख वाली होती है जो विजातीय विवाह करती है जिससे परंपरागत जाति, कुल, धर्म नष्ट हो जाते हैं।

चैदहवीं रात्रि के गर्भ से जो पुत्र पैदा होता है तो वह पिता के समान धर्मात्मा, कृतज्ञ, स्वयं पर नियंत्रण रखने वाला, तपस्वी और अपनी विद्या बुद्धि से संसार पर शासन करने वाला होता है।
पंद्रहवीं रात्रि के गर्भ से राजकुमारी के समान सुंदर, परम सौभाग्यवती और सुखों को भोगने वाली तथा पतिव्रता कन्या उत्पन्न होती है।
सोलहवीं रात्रि के गर्भ से विद्वान, सत्यभाषी, जितेंद्रिय एवं सबका पालन करने वाला सर्वगुण संपन्न पुत्र जन्म लेता है।
डिजाइनर बेबीज
आजकल मनपसंद तारीख या शुभ घड़ी के मुताबिक प्रसव का चलन बढ़ा है। इसी के चलते लोग मुहूर्त में बच्चे को जन्म देना चाहते हैं। अपनी चाह को पूरा करने के लिए वे सिजेरियन का ऑप्शन चुनते हैं।
टाइम डिजाइनर बेबीज अर्थात जन्म समय का पूर्व निर्धारण कोई नई बात है। आपने सुना होगा कि लंकापति रावण ने अपने पुत्र इंद्रजीत के जन्‍म का समय कुछ इस तरह व्‍यवस्थित किया कि उसके पुत्र के सभी ग्रह 11वें भाव में आ जाएं।
लोगों में भले ही अपनी संतान को इंद्रजीत बनाने की कल्‍पना न हो, लेकिन कुछ अभिभावक कम से कम यह तो चाहेंगे ही कि अगर सिजेरियन ऑपरेशन की संभावना हो तो तय बताए गए दिनों में से अधिकतम शुभ समय का चयन किया जाए।
अब तक हमारे देश में या कहें दुनिया में सामान्‍य विधि से ही बच्‍चे पैदा होते रहे हैं, लेकिन पिछले कुछ दशकों में सिजेरियन ऑपरेशन ने यह तय करना शुरू कर दिया है कि बच्‍चा किस तारीख को और कितने बजे पैदा होना है।
डॉक्टरों पर अक्सर ये आरोप लगता है कि पैसों के लिए जानबूझकर सिजेरियन डिलीवरी करते हैं, लेकिन ऐसा नहीं हैं। कई बार औरतें खुद वजाइनल डिलीवरी का दर्द झेलने के लिए तैयार नहीं होतीं और उनके कहने पर सिजेरियन तरीका चुनना पड़ता है। हालांकि अब तक यह चिकित्‍सकों की सुविधा पर निर्भर था, लेकिन अब कुछ फाइव स्‍टार मैटरनिटी अस्‍पतालों ने इसे अभिभावकों की इच्‍छा पर आधारित करना शुरू कर दिया है। यहीं पर ज्‍योतिष का दखल भी शुरू हुआ। सिजेरियन डिलिवरी की बढ़ती संख्याओं के पीछे कुछ और वजहें भी हैं। मसलन, लड़कियों का ज्यादा उम्र में प्रसव और प्रसव से पहले पर्याप्त एक्सरसाइज या शारीरिक मेहनत न करना। इन सबके पीछे हमारी बदलती लाइफस्टाइल एक बहुत बड़ी वजह है। आज लड़कियां देर से शादी करती हैं और देर से मां बनती हैं। वो जरूरी एक्सरसाइज भी नहीं करतीं इसी वजह से उनके लिए नॉर्मल डिलीवरी के जरिए मां बनना मुश्किल होता है।कई बार उस स्थिति में भी सिजेरियन डिलीवरी करनी पड़ती है जब मां बच्चे को पुश न कर पा रही हो, या फिर बच्चे या मां की जान को खतरा हो।
भारत में सिजेरियन डिलीवरी
भारत में औसतन 18 फीसदी बच्चे सिजेरियन डिलीवरी से पैदा होते हैं। भारत में सबसे ज्यादा सिजेरियन ऑपरेशन तेलंगाना (57.7%), आंध्र प्रदेश (40.1%) और केरल में (35.8%) होते हैं।
दिलचस्प ये है कि ब्रिटेन समेत तमाम विकसित देशों में सिजेरियन डिलीवरी का प्रतिशत भारत की तुलना में काफी कम है, जबकि यहां बेहतरीन स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध हैं।
ब्रिटेन में सिजेरियन
इंग्लैंड में 11, इटली में 25 और नॉर्वे में सिर्फ 6.6 फीसदी डिलीवरी ही सिजेरियन तरीके से होती है।
ब्रिटेन में सिजेरियन को इमरजेंसी में इस्तेमाल करते हैं। ये रास्ता तभी चुना जाता है जब किसी वजह से वजाइनल डिलीवरी नहीं कराई जा सकती। कुछ साल पहले तक डॉक्टर ही ये फैसला लेते थे कि सिजेरियन करना है या नहीं। यानी अगर कोई महिला सिजेरियन चाहती भी हो तो डॉक्टर ऐसा करने से इनकार कर सकते थे। हालांकि ये नियम साल 2011 में बदल दिया गया था। नए नियम के मुताबिक अगर महिला सिजेरियन डिलीवरी चाहती है तो डॉक्टर को वैसा ही करना होगा। इसके साथ डॉक्टरों से ये उम्मीद की जाती है कि वो महिलाओं को सिजेरियन के नुकसान और खतरों के बारे में समझाएं।साल 2011 की गाइडलाइंस में कहा गया है कि सिजेरियन डिलिवरी चाहने वाली औरतों को मानसिक रूप से नॉर्मल डिलीवरी के लिए तैयार किया जाना चाहिए।

सिजेरियन बेबी के जन्म समय तय करने के लिए ज्योतिषी क्या देखता है?
प्रसव के समय राहू काल न हो।
पंचक, भद्रा या गंडमूल न हों।
जन्म लग्न और चंद्रमा पीड़ित न हों।
आप्रेशन का समय दिन हो या रात हो ?
किस किस लग्न या समय में मंगलीक योग बन रहा है ?
यदि गोचर में काल सर्प योग चल रहा है, तो संतान उसी योग में ही होगी।
डाक्टर द्वारा दी गई डिलीवरी डेट से पांच दिन आगे या पीछे ही मुहूर्त निकल सकता है।
महिला की कुंडली में सर्जरी का योग भी होना चाहिए, कई बार नार्मल डिलीवरी समय से पूर्व भी हो जाती है।
फिर भी जन्म- मरण प्रभु के हाथ ही है। डाक्टर या ज्योतिषी के हाथ नहीं। ये दोनों प्राणी केवल गाइड कर सकते हैं।

 
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