संजय कुमार मिश्रा /चंडीगढ़
भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत सत्यापित प्रतिलिपी नहीं देने पर चंडीगढ़ राज्य उपभोक्ता आयोग द्वारा लोक अधिकारी शिक्षा विभाग चंडीगढ़ पर 35000 रूपये का जुर्माना लगाया गया है। आयोग ने इसे विपक्षी की सेवा में कमी बताया और जिला आयोग के निर्णय को खारिज कर दिया।
इसके पहले जिला उपभोक्ता उपभोक्ता आयोग ने आवेदक द्वारा दी गई "सेवा में कमी" की शिकायत को खारिज कर दिया था ये कहते हुए कि आवेदन में निजी जानकारी मांगी गई है जिसे सूचना अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 8 के तहत तीसरा पक्ष का छूट प्राप्त है, फिर ये जानकारी संबंधित पक्ष ने देने से लिखित में मना किया हुआ है।
लेकिन अपील पर सुनवाई में राज्य आयोग ने कहा , मांगी गई जानकारी कानूनन लोक दस्तावेज है, और भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत दी गई आवेदन को साक्ष्य अधिनियम के तहत ही निपटाया जाना चाहिए ना कि सूचना अधिकार अधिनियम के प्रावधान के तहत ।
केस के मुताबिक, पंचकूला निवासी परवीन पठानीया ने 4 अगस्त 2022 को भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 76 के तहत लोक अधिकारी शिक्षा विभाग चंडीगढ़ को 200 रुपया फीस के साथ एक आवेदन प्रस्तुत कर शिक्षक की नियुक्ति, एवं प्रमोशन से संबंधित नियम एवं इससे संबंधित कोर्ट निर्णय की सत्यापित प्रतिलिपी मांगी। आवेदक ने एक कार्यरत प्रोफेसर रितु अग्रवाल के प्रमोशन से संबंधित दस्तावेज की सत्यापित प्रतिलिपी भी मांगी, लेकिन लोक अधिकारी शिक्षा विभाग चंडीगढ़ ने वांछित दस्तावेज की सत्यापित प्रतिलिपी आवेदक को मुहैया नहीं कराई। व्यथित होकर आवेदक ने विपक्षी के "सेवा में कमी" की शिकायत चंडीगढ़ जिला उपभोक्ता आयोग को दी। ये शिकायत संख्या CC/114 ऑफ 2024 के रुप में दर्ज हुई । नोटिस पर पक्ष विपक्ष दोनों ने अपने अपने तर्क रखे।
आवेदक ने कहा, विपक्षी ने साक्ष्य अधिनियम के तहत फीस देने के बावजूद भी सत्यापित प्रतिलिपी मुहैया नहीं कराकर सेवा में कमी/ कोताही की है, जबकि विपक्षी पार्टी ने कहा, मांगी गई जानकारी अस्पष्ट थी, और निजी होने के कारण इसे सूचना अधिकार अधिनियम की धारा 8 के तहत नहीं दी जा सकती है। यही नहीं संबंधित व्यक्ति ने ये जानकारी किसी तीसरे पक्ष को देने से लिखित में मना किया था। इस निजी जानकारी को छोड़कर दूसरी ऑफिशियल जानकारी आवेदक को उपलब्ध करा दी गई है।
दोनों पक्षों की दलील को सुनने के बाद जिला उपभोक्ता आयोग ने विपक्षी की दलील को सही मानते हुए 3 अप्रैल 2025 को शिकायत खारिज कर दिया।
इस निर्णय से व्यथित आवेदक ने चंडीगढ़ राज्य उपभोक्ता आयोग में अपील दायर की जो FA/250/2025 के रूप में दर्ज हुआ। अपील पर सुनवाई करते हुए आयोग ने कहा,
सार्वजनिक लेनदेन में सरलता सुशासन की पहचान है। इसका मुख्य उद्देश्य नागरिक सेवाओं को सुलभ, पारदर्शी और भ्रष्टाचार मुक्त बनाना है। भारतीय न्यायालय इसमें मुख्य भूमिका अदा करता है जिससे सिस्टम में पारदर्शिता एवं जवाबदेही बनती है, एवं इससे न्याय व्यवस्था में आमजन का विश्वास भी बढ़ता है।
आधिकारिक कर्तव्य निर्वहन के दौरान बनाए गए या प्राप्त किए गए दस्तावेज कानूनन लोक दस्तावेज की श्रेणी में आते हैं। फिर साक्ष्य अधिनियम के तहत दिए गए आवेदन पर सूचना अधिकार अधिनियम के प्रावधान लागू नहीं हो सकते। जिला आयोग ने अपने निर्णय में ये कानूनी गलती की है जिस कारण ये निर्णय खारिज करने योग्य है। चुंकि विपक्षी ने साक्ष्य अधिनियम के तहत मांगी गई सत्यापित प्रतिलिपी फीस देने के बावजूद भी नहीं देकर सेवा में कोताही की है जिसके लिए वो जुर्माने एवं आवेदक मुआवजा के हकदार है। आयोग विपक्षी पार्टी पर मानसिक यातना के लिए 25000 रूपए का जुर्माना लगाया एवं मुकदमा खर्च के रुप में 10000 रुपया, कुल 35000 रुपया 30 दिन के भीतर शिकायतकर्ता को देने का आदेश दिया, 30 दिन के भीतर आदेश की अनुपालना ना होने पर उपरोक्त रकम पर 12 प्रतिशत का ब्याज भी देय होगा।