पत्रकार डॉ. राजेंद्र धवन के कविता संग्रह 'मैं सागर खारा, तुम नदी मीठी' का विमोचन
चण्डीगढ़ : राष्ट्रीय साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डॉ. माधव कौशिक ने कहा कि आज के दौर में ज्यादातर रचनाएं आक्रोश से भरी दिखती हैं। ऐसे माहौल में प्रेम और प्रकृति पर कविताएं लिखना मुश्किल काम है। यह मुश्किल काम पत्रकार डॉ. राजेंद्र धवन ने किया है।
कौशिक रविवार को धवन की पुस्तक 'मैं सागर खारा, तुम नदी मीठी' के विमोचन कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता दैनिक ट्रिब्यून के संपादक नरेश कौशल ने की। चंडीगढ़ प्रेस क्लब में आयोजित पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में डॉ. कौशिक ने कहा कि उनके लिए यह बेहद भावुक पल है क्योंकि धवन परिवार से उनका पुराना नाता रहा है। उन्होंने कहा कि इस खूबसूरत शहर में भाषायी दुर्भावना नहीं है। हिंदी, पंजाबी, अंग्रेजी, उर्दू आदि के साहित्यकार एवं पाठक एक सभागार में दिख जाते हैं।
प्रतिष्ठित अखबार 'दैनिक ट्रिब्यून' को साहित्यकारों की 'पौधशाला' बताते हुए उन्होंने कहा कि 80 के दशक में इसके विभिन्न कॉलम में वह भी लिखते रहे हैं। लेखिका एवं निर्देशक निशा लूथरा ने वरिष्ठ साहित्यकार सुरजीत पातर एवं विनोद कुमार शुक्ल को याद करते हुए कहा कि डॉ. धवन की किताब में शृंगार और विरह का अनूठा संगम है। कार्यक्रम में लेखिका एवं आरजे पायल भंडारी, बबिता कपूर, डॉ. रेखा मित्तल, शशिधर पुरोहित एवं अश्विनी शांडिल्य ने कविता पाठ एवं समीक्षात्मक टिप्पणी की। मंच संचालन डॉ. प्रदीप राठौर ने किया। आगंतुकों का स्वागत सलोनी धवन ने किया।
चौथ पर करवा छलका जाये : नरेश कौशल
अपने अध्यक्षीय संबोधन में दैनिक ट्रिब्यून के संपादक नरेश कौशल ने धवन की एक कविता 'आसमां में लकीर खींचते हैं' में त्वरित एक पंक्ति जोड़ते हुए कहा, 'आ कुछ बड़ा करते हैं, धवन की माताजी को नमन करते हैं।' कार्यक्रम में मौजूद राजेंद्र धवन की माताजी सुशीला धवन की ओर मुखातिब होते हुए उन्होंने समस्त परिवार को पुस्तक विमोचन की बधाई दी। वरिष्ठ पत्रकार कौशल ने धवन की एक और कविता 'हर रंग तुझ पर फबता है' में चंद पक्तियां जोड़ते हुए कहा, '...चौथ पर करवा छलका जाये।'
इसी संदर्भ में उन्होंने कहा कि व्यंग्यात्मक रूप से 'टू लाइनर' के तौर पर खबरों, घटनाओं पर आधारित कवित्त शैली की उनकी भी पुस्तक जल्दी ही पाठकों के समक्ष आने वाली है। साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल की कविता 'हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था, व्यक्ति को मैं नहीं जानता था, हताशा को जानता था' का जिक्र करते हुए कौशल ने कहा कि पत्रकारिता के साथ-साथ लेखन कठिन है, लेकिन धवन ने यह कर दिखाया।