मनमोहन सिंह
'मत चूके चौहान', महान कवि चंद्रवरदाई की ये शब्द अनायास मेरे जहन में आ गए। यही अल्फ़ाज़ मैं आज भारत की महिला क्रिकेट टीम को कहना चाहता हूं। मैं उन्हें कहता हूं कि यही मौका है फतह हासिल करने का इतिहास में नाम दर्ज कराने का। वही करने का जो आज तक नहीं हुआ।हमारी लड़कियां महिला क्रिकेट विश्वकप से केवल दो कदम दूर हैं। हो सकता है कि इस बार यह कप भारत की सरजमीं को चूम ले। इस बात में कोई शक नहीं कि भारत की टीम ऐसा करने की सलाहियत रखती है। उसमें वह प्रतिभा है कि वह विश्व विजेता बन जाए पर यह आसान न होगा।
सेमीफाइनल में भारत का मुकाबला पिछले विजेता ऑस्ट्रेलिया के साथ है। वह एक बेहद संतुलित और पेशेवराना तरीके से खेलने वाली टीम है। लीग मैच में हम 300+ का स्कोर बना कर भी उनसे हार गए थे। इसलिए सेमीफाइनल में अलग रणनीति की ज़रूरत है। जहां तक बल्लेबाजी की बात है तो भारत के शुरू के बल्लेबाजों ने शानदार खेल दिखाया था।
यहां तक कि पहली विकेट के लिए प्रतिका (75) और स्मृति (80) ने 155 रन जोड़ दिए। इन दोनों के बाद हरलीन, हरमनप्रीत, जेमिमा और ऋचा घोष ने भारत के स्कोर को मज़बूती दी। लेकिन अंतिम पांच बल्लेबाज अमानजोत कौर (16), दीप्ति शर्मा (1), स्नेह राणा (8 नाबाद), क्रांति गौड़ (1) और चारनी (0) मिल कर केवल 26 रन ही जोड़ पाए। जिस तरह ऑस्ट्रेलिया की फिरकी गेंदबाज इनेबल सदरलैंड (5) और सोफी मॉलिंक्स (3) को सफलता मिली उसमें उनकी सटीक गेंदबाजी से अधिक भूमिका भारतीय बल्लेबाजों की रही।
भारतीय बल्लेबाज काफी लापरवाही के साथ खेलीं। खैर फिर भी 330 का स्कोर ऐसा था जो काफी मज़बूत माना जाएगा। लेकिन भारतीय प्रबंधन ने जिस तरह गेंदबाजी में रेणुका सिंह को बाहर बैठा कर उसके विकल्प के तौर पर अमानजोत कौर को खिलाया वह समझ से बाहर था। अमनजोत कौर 12 गेंदों में केवल 16 ही रन बना सकीं और 9 ओवर में 7.56 की औसत से रन दे कर दो ही विकेट हासिल कर पाई।
इसके अलावा क्रांति गौड़ ने 8.11 की औसत से रन दे कर मात्र एक विकेट लिया। 10 ओवर का पूरा कोटा फेंकने वाली स्नेह राणा ने 8.50 की औसत से रन दिए। उसे एक भी सफलता नहीं मिली। चारनी ने सबसे कफ़ायती गेंदबाजी की और केवल 4.10 की औसत से रन दे कर तीन विकेट लिए। दो विकेट दीप्ति शर्मा को भी मिले। दीप्ति ने 5.20 की औसत से रन दिए। हालत यह थी कि कप्तान हरमनप्रीत कौर को खुद भी एक ओवर करना पड़ा, जिसमें उन्होंने 10 रन दिए। मतलब यह कि हमारी गेंदबाजी काफी कमज़ोर साबित हुई।
अब बात सेमीफाइनल की। थोड़ा और विश्लेषण करें तो पाएंगे कि भारत ने अगर हेली का विकेट जल्दी निकाल दिया होता तो स्थिति और बनती। वह अकेली थी जिसने 142 रन बना डाले। भारत को अपनी गेंदबाजी को मजबूत करना होगा। इसमें रेणूका सिंह तरुप का पत्ता साबित हो सकती है। उसकी अंदर आती गेंदें बहुत खतरनाक होती हैं। वैसे भी पॉवर प्ले में वह अक्सर विकेट्स निकालती हैं। लेकिन प्रतीका रावल का घायल होना टीम की चिंता का विषय है। उसके स्थान पर शेफाली वर्मा को टीम में लिया गया है।
शेफाली अच्छी ओपनर रही है पर उसकी फॉर्म अस्थिर है। देखते हैं कि उसे अंतिम 11 में स्थान मिलता है कि नहीं। वैसे अमानजोत के रूप में टीम को एक अतिरिक्त गेंदबाज तो मिल ही जाएगा। यहां यह भी ज़रूरी है कि रेणुका सिंह के पूरे ओवर लगातार करवाए जाएं। देखा गया है कि दूसरे स्पेल में रेणुका उतनी प्रभावी नहीं रहती। असल में उसके पास गति नहीं है। उसकी अधिकतर गेंदें 100 किलोमीटर की गति के आसपास होती हैं। उसका मुख्य हथियार उसकी इनस्विंगर या फिर वो गेंद जो वो बहुत चतुराई से सीधी निकाल देती है।
उसकी गेंदबाजी पर अगर विकेटकीपर स्टंप्स पर रहे तो स्टंपिंग का चांस भी बनता है। कई बल्लेबाज रेणुका की स्विंग को कम करने के लिए क्रीज़ से बाहर खड़े हो जाते हैं, विकेटकीपर का आगे खड़े रहना उन पर मनोवैज्ञानिक असर छोड़ेगा। क्रांति गौड़ बेहतरीन गेंदबाज है पर अक्सर लाइन और लैंग्थ में चूक जाती है। वह अच्छा यॉर्कर भी डालती है। उसे पूरी लंबाई की गेंदें और हर गेंद विकेट पर रखने की ज़रूरत है। भारत की की भी तेज़ गेंदबाज 'शॉर्ट पिचड' गेंदबाजी नहीं कर सकती क्योंकि न तो उनके पास गति है और न ही उछाल। इसलिए जितना हो सके उन्हें विकटों पर और अच्छी लंबाई की गेंदबाजी करना ज़रूरी है।
जहां तक स्पिन गेंदबाजी की बात है तो उन्हें भी अपनी लाइन विकटों पर रखनी होगी कुछ फ्लाइट के साथ लंबाई में बदलाव करते रहना होगा। सीधी और सपाट गेंदबाजी का कोई फायदा नहीं होगा। बल्लेबाजों को आगे निकल कर लॉन्ग ऑन या लॉन्ग ऑफ पर शॉट मारने दो। यह हमेशा बल्लेबाज के लिए खतरनाक है। मेरा मतलब है कि अगर चौके छक्के ही खाने हैं तो सीधे स्ट्रोक पर खाओ। उन्हें क्रॉस बेटेड शॉट्स नहीं खेलने देने चाहिए।
भारत के लिए मौका है ऑस्ट्रेलिया से बदला लेने का और विश्व विजेता बनने का। बस 'मत चूके चौहान'