चंडीगढ, संजय कुमार मिश्रा:
गुजरात राज्य उपभोक्ता आयोग ने ऐसे ही एक मामले में मुफ्त इलाज के बावजूद मरीज को उपभोक्ता माना और जिला फोरम को छह महीने में दुबारा से सुनवाई का आदेश दिया है। आयोग ने कहा, भले ही मरीज का अस्पताल में मुफ्त इलाज हुआ है, फिर भी मरीज उपभोक्ता ही कहलाएगा क्योंकि अस्पताल का कार्य स्वरूप एक “सर्विस” का है, जो कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट के तहत आती है।
मामले की होगी फिर से जांच:
*******************
यह मामला 2013 का है, जब भरतकुमार गोरहवा को बोताड के अक्षर अस्पताल में किडनी स्टोन के इलाज के लिए भर्ती किया गया था। सर्जरी के बाद उन्हें एक एंटीसेप्टिक इंजेक्शन दिया गया, जिसके बाद उनकी हालत बिगड़ गई और अंत में उनकी मौत हो गई।
परिवार ने भवानीगर जिला उपभोक्ता आयोग में अस्पताल के खिलाफ मुआवजे की मांग की। फोरम ने 2015 में उनकी शिकायत यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि मुफ्त इलाज की वजह से मरीज उपभोक्ता नहीं था।
लेकिन परिवार ने इस निर्णय से असहमति जताते हुए गुजरात राज्य उपभोक्ता आयोग में अपील की। मरीज के वकील ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए आयोग को बताया कि, सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के मुताबिक फ्री इलाज देने वाला अस्पताल भी कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट के दायरे में आता है। गुजरात राज्य उपभोक्ता आयोग ने मरीज के इस तर्क को स्वीकार करते हुए मामले को फिर से जांच के लिए जिला उपभोक्ता आयोग को भेज दिया।
ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट के व्यवस्था अनुसार, केवल वही अस्पताल या चिकित्सक उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के दायरे से बाहर होंगे जो सभी मरीजों को पूरी तरह से निःशुल्क चिकित्सा सेवाएँ प्रदान करते हैं; लेकिन यदि कोई अस्पताल कुछ मरीजों से शुल्क लेता है और कुछ कैटेगरी को मुफ्त सेवाएँ देता है, तो अस्पताल का वह मुफ्त सेवा भी उपभोक्ता अधिनियम के अंतर्गत आएगा, क्योंकि मुफ्त सेवा में उपयोग होने वाली कीमत का आंशिक ही सही लेकिन यह भरपाई दूसरे मरीजों से फीस लेकर की जा रही है।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जहाँ भी सेवाओं के लिए भुगतान किया जाता है, चाहे वह निजी या सरकारी अस्पताल हो, वहाँ डॉक्टर और अस्पताल उपभोक्ता के प्रति उत्तरदायी हो सकते हैं।
गुजरात राज्य उपभोक्ता आयोग का यह फैसला मरीजों के लिए बहुत ही अहम है। क्योंकि कई बार लोग सोचते हैं कि अगर इलाज मुफ्त है, तो वे अस्पताल के खिलाफ उपभोक्ता आयोग में शिकायत नहीं कर सकते, लेकिन यह गलत है। उपभोक्ता कानून के तहत, अगर अस्पताल कोई सेवा देता है, चाहे वह मुफ्त हो या पैसे लेकर, तो उसे सेवा प्रदाता एवं मरीज को उपभोक्ता माना जाता है और अगर इलाज में लापरवाही होती है, तो मरीज या उनके परिवार को मुआवजा मांगने का पूरा हक है। गुजरात राज्य उपभोक्ता आयोग का यह फैसला उन लोगों को हिम्मत देगा जो मुफ्त इलाज में लापरवाही का शिकार होते हैं।