संजय कुमार मिश्रा /चंडीगढ
पंजाब उपभोक्ता आयोग ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत सेवा में कमी की शिकायत / अपील को सूचना अधिकार बताकर खारिज किया। आयोग ने कहा, आवेदक ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत मांगी गई दस्तावेज नहीं मिलने पर संबंधित कानून के तहत अपील नहीं किया। जबकि भारतीय साक्ष्य अधिनियम में फीस देने के बावजूद भी दस्तावेज नहीं मिलने पर अपील का कोई प्रावधान ही नहीं है।
आयोग के अध्यक्ष हरिंदरपाल सिंह महल एवं सदस्या श्रीमती किरण सिबल की पीठ ने कहा, जब आवेदक ने एक कानून भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत कोई आवेदन दिया और उसमें किसी तरह से सेवा में कमी देखी गई या वांछित दस्तावेज की कॉपी नहीं मिली तो आवेदक को उसी कानून के तहत अपील करना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। आयोग ने कहा कि लुधियाना जिला उपभोक्ता आयोग का फैसला बिल्कुल सही था जिसमें उन्होंने राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के सतपाल सैनिचेला निर्णय के हवाले से बताया कि, सूचना अधिकार अधिनियम के तहत मांगी गई दस्तावेज नहीं मिलने या देरी से मिलने की शिकायत उपभोक्ता आयोग में पोषणीय नहीं है।
मामले के अनुसार, लुधियाना निवासी अजय शर्मा ने लुधियाना प्रादेशिक परिवहन अधिकारी से भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत फीस के साथ आवेदन भेजकर कुछ पब्लिक दस्तावेज की सत्यापित प्रतिलिपि मांगी, जिसे परिवहन अधिकारी ने मुहैया नहीं कराई। सेवा में कमी की शिकायत जिला उपभोक्ता आयोग लुधियाना को दी गई, और मांगी गई दस्तावेज की सत्यापित प्रतिलिपि दिलाने की प्रार्थना की जिसे जिला आयोग ने एडमिशन सुनवाई में ही उपरोक्त तर्क के साथ खारिज कर दिया।
जिला आयोग के इस निर्णय से व्यथित होकर आवेदक अजय शर्मा ने पंजाब राज्य उपभोक्ता आयोग चंडीगढ़ में अपील डाली। अपने अपील में अजय शर्मा ने कहा, मेरा शिकायत साक्ष्य अधिनियम के तहत सेवा में कमी की है, इसे सूचना अधिकार अधिनियम बताकर खारिज करना गलत है।
लुधियाना निवासी अजय शर्मा ने लुधियाना प्रादेशिक परिवहन अधिकारी से भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत फीस के साथ आवेदन भेजकर कुछ पब्लिक दस्तावेज की सत्यापित प्रतिलिपि मांगी, जिसे परिवहन अधिकारी ने मुहैया नहीं कराई। सेवा में कमी की शिकायत जिला उपभोक्ता आयोग लुधियाना को दी गई, और मांगी गई दस्तावेज की सत्यापित प्रतिलिपि दिलाने की प्रार्थना की जिसे जिला आयोग ने एडमिशन सुनवाई में ही उपरोक्त तर्क के साथ खारिज कर दिया।
प्रथम अपील संख्या 623 ऑफ 2024 पर सुनवाई करते हुए पंजाब राज्य उपभोक्ता आयोग ने प्रतिपक्षी को नोटिस भेजा लेकिन प्रतिपक्षी उपस्थित नहीं हुआ जिससे आयोग ने उसे एक्स पार्टी घोषित कर अपीलकर्ता को सुना। अपीलकर्ता अजय शर्मा ने अपने उपरोक्त दलील को मजबूती से रखा और बताया कि,
बोम्बे हाईकोर्ट ने क्रिमीनल पिटीशन संख्या 1194 ऑफ 2008 एवम 2331 ऑफ 2006 (सुहास भन्ड बनाम महाराष्ट्र सरकार) का निपटारा करते हुए 18-08-2009 को अपने आदेश के पैरा 10 मे कहा कि – कम्पनी के रजिस्ट्रार का ऑफिस एक लोक दफ्तर है एवम वहां के सभी दस्तावेज भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 74 के तहत एक जन दस्तावेज है। कोर्ट ने अपने आदेश के पैरा 11 मे कहा कि – “कंपनी रजिस्ट्रार एक जन ऑफिस है और वो अपने ऑफिस के दस्तावेज की सत्यपित प्रतिलिपी भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 76 के तहत मांगे जाने पर आमजन को देने के लिये बाध्य है।
इसके साथ ही राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के ग्वालियर कलेक्टर के निर्णय का भी हवाला दिया गया और इस दिनों निर्णय की कॉपी भी आयोग को दी गई, लेकिन पंजाब राज्य उपभोक्ता आयोग ने उपरोक्त दोनों निर्णय को अनसुना कर दिया और अंततः 8 मई 2025 को अपील खारिज कर दी।
अपीलकर्ता अजय शर्मा पंजाब राज्य उपभोक्ता आयोग के इस निर्णय पर हैरानी जताते हुए कहते हैं कि :
1. जिला आयोग ने मेरे साक्ष्य अधिनियम के शिकायत को सूचना अधिकार अधिनियम से संबंधित बताकर खारिज किया जो कि सरासर गलता है और राज्य उपभोक्ता आयोग ने इसपर कुछ भी नहीं बोलकर जिला आयोग के निर्णय पर आंख मूंदकर अपना मुहर लगा दिया।
2. भारतीय साक्ष्य अधिनियम में फीस देकर भी सत्यापित प्रतिलिपि नहीं मिलने पर अपील का कोई प्रावधान ही नहीं है, पंजाब राज्य उपभोक्ता आयोग ने ये बताया ही नहीं कि उक्त अधिनियम के किस धारा के तहत अपील की जा सकती थी लेकिन नहीं की गई।
3. मेरे द्वारा बताए गए उपरोक्त दो निर्णय एवं अपील के ग्राउंड को पंजाब राज्य उपभोक्ता आयोग ने रिकॉर्ड में लिया ही नहीं, और ना ही अपने निर्णय में उसका कोई जिक्र किया कि ये निर्णय क्यों स्वीकार करने योग्य नहीं है और मेरे द्वारा मांगी गई राहत क्यों पोषणीय नहीं है।
4. सबसे बड़ी बात, उपभोक्ता अधिनियम के उपचार अन्य किसी भी अधिनियम में वर्णित उपचार के अलावा एक अतिरिक्त उपचार है, शिकायतकर्ता या अपीलकर्ता को उपभोक्ता अधिनियम में वर्णित अतिरिक्त उपचार से वंचित करके संबंधित कानून के ही उपचार लेने को बोलना, उपभोक्ता अधिनियम के आत्मा एवं इसे बनाने के मुख्य उद्देश्य के खिलाफ है।