डॉ. प्रदीप कुमार
पर्यावरण संरक्षण गतिविधि, चंडीगढ़
आज का आधुनिक समाज विकास और तकनीक की तेज़ रफ्तार में बेशक आगे बढ़ रहा है, लेकिन इसी रफ्तार ने हमारे जीवन में एक ऐसा खतरा चुपचाप घुसा दिया है जिसे हम न तो महसूस कर पाते हैं और न ही गंभीरता से लेते हैं — यह खतरा है ध्वनि प्रदूषण। यह प्रदूषण हमारी आंखों से ओझल होता है, लेकिन इसके असर हमारे शरीर, दिमाग और जीवनशैली पर गहरे घाव छोड़ जाते हैं।
तेज़ हॉर्न, दिन-रात बजते डीजे, धार्मिक आयोजनों में लाउडस्पीकर, टीवी और मोबाइल पर अत्यधिक तेज़ आवाज़ें, घरों के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का लगातार चलना — ये सभी हमारे जीवन को एक ऐसे शोरगुल में बदल चुके हैं, जिससे बाहर निकल पाना आसान नहीं रह गया।
ध्वनि प्रदूषण के पीछे कई कारक जिम्मेदार हैं। सबसे प्रमुख कारण हैं – सड़क यातायात और अनावश्यक हॉर्न बजाना, औद्योगिक क्षेत्रों की मशीनों की ध्वनि, भवन निर्माण और सड़क विस्तार कार्यों का भारी शोर, विवाह व धार्मिक आयोजनों में डीजे और लाउडस्पीकर का अनियंत्रित उपयोग, चुनावी रैलियों और धार्मिक जुलूसों का शोर, लगातार चलने वाला टीवी, मोबाइल पर तेज़ म्यूज़िक या कॉल, और यहां तक कि घरों में चल रहे मिक्सर, वॉशिंग मशीन, एसी और फैन जैसे उपकरण भी। शहरी क्षेत्रों में तो यह स्थिति और भी भयावह है, जहां हर कोना किसी न किसी प्रकार के शोर से प्रभावित है।
आजकल एक और नई समस्या उभर रही है — हर समय मोबाइल पर रहना, घंटों तक टीवी देखना, या लंबे टेलीफोनिक संवाद। हम यह भूल चुके हैं कि निरंतर इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की ध्वनि, भले ही वह ‘मनोरंजन’ के नाम पर हो, हमारे मानसिक स्वास्थ्य को दीमक की तरह खोखला कर रही है। मोबाइल, टीवी या म्यूजिक प्लेयर की आवाज़ न्यूनतम स्तर (40 डेसीबल से कम) पर रखनी चाहिए, लेकिन आज की दिनचर्या में यह बात नज़रअंदाज़ हो जाती है।
आजकल एक और नई समस्या उभर रही है — हर समय मोबाइल पर रहना, घंटों तक टीवी देखना, या लंबे टेलीफोनिक संवाद। हम यह भूल चुके हैं कि निरंतर इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की ध्वनि, भले ही वह ‘मनोरंजन’ के नाम पर हो, हमारे मानसिक स्वास्थ्य को दीमक की तरह खोखला कर रही है। मोबाइल, टीवी या म्यूजिक प्लेयर की आवाज़ न्यूनतम स्तर (40 डेसीबल से कम) पर रखनी चाहिए, लेकिन आज की दिनचर्या में यह बात नज़रअंदाज़ हो जाती है।
हम यह नहीं समझते कि *संगीत हमारी निजी आत्म-संतुष्टि के लिए है, न कि दूसरों को मजबूरी में सुनाने के लिए।* डीजे या म्यूजिक सिस्टम का अत्यधिक उपयोग, वह भी खुले वातावरण में, न केवल कानों के लिए हानिकारक है बल्कि मानसिक बेचैनी का कारण भी बनता है। नियम के अनुसार डीजे या अन्य ध्वनि यंत्र यदि उपयोग किए भी जाएं तो उन्हें बंद और सीमित जगहों में 40 डेसीबल से नीचे रखना चाहिए।
ध्वनि प्रदूषण का सबसे बुरा प्रभाव उन पर पड़ता है जो पहले से ही कमजोर स्थिति में होते हैं — जैसे नवजात शिशु, छोटे बच्चे, वृद्धजन, रोगी और गर्भवती महिलाएं। शोर की वजह से बच्चों की नींद प्रभावित होती है, उनकी पढ़ाई में ध्यान नहीं लगता और मानसिक विकास में रुकावट आती है। वृद्धजन में यह उच्च रक्तचाप, अनिद्रा और स्मृति ह्रास का कारण बन सकता है। अस्पतालों में मरीज़ों को ठीक होने में रुकावट आती है, और मानसिक रोगियों की स्थिति तो बदतर हो ही जाती है।
त्यौहारों के दौरान या क्रिकेट मैच जीतने के बाद, एक नया चलन बन चुका है — रात और सुबह के वक्त तेज़ धमाकेदार पटाखे जलाना। अगर कोई खुद को एक बीमार व्यक्ति, एक नवजात शिशु या उच्च रक्तचाप के मरीज़ के स्थान पर रखे, तो उन्हें महसूस होगा कि ऐसे तेज़ धमाके कितने खतरनाक और असहनीय हो सकते हैं। पशु भी इन आवाज़ों से डरे और आतंकित हो जाते हैं, लेकिन हम उनका दर्द न समझते हैं, न महसूस करते हैं।
औद्योगिक क्षेत्रों की मशीनों की आवाज़ दिन-रात चलती रहती है, जिससे आसपास रहने वाले नागरिकों को लंबे समय तक उच्च डेसीबल स्तर पर रहना पड़ता है। कारखानों और निर्माण स्थलों के पास रहने वाले लोगों की मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर इसके गंभीर परिणाम होते हैं — जैसे सुनने की क्षमता में कमी, चिड़चिड़ापन, नींद की कमी, और स्थायी मानसिक तनाव। भवन निर्माण और सड़क विस्तार कार्यों में उपयोग की जाने वाली मशीनों से उत्पन्न कंपन और ध्वनि न केवल मनुष्यों के लिए बल्कि आसपास के जीवों और पक्षियों के लिए भी हानिकारक होती है।
घरों के भीतर भी ध्वनि प्रदूषण की अनदेखी नहीं की जा सकती। मिक्सर, ग्राइंडर, वॉशिंग मशीन, एयर कंडीशनर, यहां तक कि पंखे तक से उत्पन्न होने वाली आवाज़ जब एकसाथ चलती है, तो यह भी ध्वनि प्रदूषण को बढ़ाती है। हर अतिरिक्त डेसीबल हमारे शरीर में एंज़ायटी का स्तर बढ़ा देता है। धीरे-धीरे यह मानसिक थकावट, सिरदर्द, नींद की कमी और व्यवहार में चिड़चिड़ापन ला सकता है।
भारत सरकार ने ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने हेतु कई दिशा-निर्देश तय किए हैं। रिहायशी क्षेत्रों में अधिकतम 55 डेसीबल, व्यावसायिक क्षेत्रों में 65 डेसीबल, औद्योगिक क्षेत्रों में 75 डेसीबल और संवेदनशील क्षेत्रों (जैसे अस्पताल, स्कूल आदि) में 50 डेसीबल की सीमा तय की गई है। रात 10 बजे के बाद किसी भी प्रकार के ध्वनि यंत्रों पर पूर्ण प्रतिबंध है। परंतु इन नियमों का पालन तभी हो सकता है जब आम नागरिक जागरूक और जिम्मेदार बनें।
सड़कों पर बढ़ते ट्रैफिक और अनावश्यक हॉर्न का चलन हमारे धैर्य की कमी को दर्शाता है। दबाव हॉर्न या सामान्य हॉर्न बजाकर हम समस्या का समाधान नहीं कर रहे, बल्कि दूसरों को और अधिक परेशानी में डाल रहे हैं। आज के समय में सड़क दुर्घटनाओं से अधिक, रोड रेज के मामलों में इज़ाफा हो रहा है, जिसका एक कारण यह भी है कि लोग ध्वनि और तनाव की सीमा से बाहर जा रहे हैं। शांति और संयम ही अंतिम समाधान है।
ध्वनि प्रदूषण से बचाव के लिए प्रकृति ही हमारी सबसे बड़ी सहयोगी है। बांस, नीम, अशोक जैसे पेड़ आवाज़ को अवशोषित करने की अद्भुत क्षमता रखते हैं। सड़कों के किनारे, विद्यालयों और अस्पतालों के आसपास हरित पट्टियाँ लगाई जाएं तो यह न केवल वातावरण को शुद्ध करेंगी बल्कि शोर को भी कम करेंगी। शहरी क्षेत्रों में पार्कों की संख्या बढ़ाना भी एक प्रभावी उपाय है।
इसके अतिरिक्त ध्यान (Meditation) और योग ध्वनि प्रदूषण से उत्पन्न मानसिक प्रभावों को दूर करने में सहायक सिद्ध होते हैं। नियमित ध्यान से मानसिक स्पष्टता बढ़ती है, तनाव कम होता है और धैर्य में वृद्धि होती है। यह एक सरल लेकिन अत्यंत प्रभावी उपाय है जो आज के हर व्यक्ति को अपनाना चाहिए।
ध्वनि प्रदूषण के विरुद्ध सबसे शक्तिशाली हथियार है — जनजागरूकता। जब तक हम स्वयं इस खतरे को न समझें और अपनी दिनचर्या में परिवर्तन न लाएं, तब तक कोई नियम, कोई कानून हमारी रक्षा नहीं कर सकता। हमें खुद पहल करनी होगी — बेवजह हॉर्न बजाने से परहेज करना होगा, आयोजनों में ध्वनि की सीमा का पालन करना होगा, बच्चों को शांत और अनुशासित जीवनशैली सिखानी होगी और खुद भी संयमित जीवन जीना होगा।
ध्वनि प्रदूषण एक ऐसा मौन शत्रु है, जो न तो शोर करता है, न ही किसी को चेतावनी देता है — पर यह हमारे जीवन में स्थायी विकार छोड़ जाता है। अब समय आ गया है कि हम इसके प्रति सचेत हों, अपनी आदतों में बदलाव लाएं और एक शांत, संतुलित और स्वस्थ समाज की ओर कदम बढ़ाएं। क्योंकि शांत वातावरण न केवल जीवन को बेहतर बनाता है, बल्कि रिश्तों को भी मधुर बनाता है। (sharmaashupk@gmail.com)